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Tuesday, November 19, 2024

मोक्ष वेद





1. शुद्र 
शक्तिमान के साथ आदर्शो के विपरीत होना।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।


मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

2.वैश्य
शक्तिमान के साथ आदर्श।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।

मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

3. क्षत्रिय
शक्तिमान के साथ आदर्श।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।

शक्तिमान के साथ आदर्श।
काम,क्रोध,मोह,लोभ,मद तथा मत्सर पर नियंत्रण करना।

हमेशा मुख में 'ओम मंत्र' का गुंजना।

पंच ज्ञान इन्द्रियों में नियंत्रण।
ज्ञान इंद्रियां - आंख,नाक,कान,जीभ और त्वचा।

पंचतत्व - अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी और आकाश।

मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

भय,क्रोध,चिंता और खिन्नता को नियंत्रिण करना या मुक्त होना।

यह छः अवगुणों पर नियंत्रण।
1. काम 
2. क्रोध 
3. मोह
4. लोभ 
5. मद 
6. मत्सर

योग,प्राणायाम,जप तप, ध्यान को अपने जीवन में अपनाना अनिवार्य।

जब योग और मुद्रा का अभ्यास किया जाता है, तो चक्र संतुलित हो जाते हैं और हमारी प्रणाली को शारीरिक और भावनात्मक दोनों ही तरह से एक स्थिर, संतुलित तरीके से कार्य करने में सक्षम बनाते हैं। इन में कुछ योग आसन शामिल हैं:

जब तक चक्र जागृत ना हो तब तक इंसान को उसके होने का पता भी नहीं चलता है। जब यह जागृत होता है तभी उस चक्र का होने का इंसान को अनुभव होता है।

परिभाषा।
1. काम - (आलस्य)
1.   दोस्तों काम आधारित आलस्य आलस्य निर्धनता की जननी है आलस्य करने से मनुष्य का विभिन्न तरह से नुकसान होता है दोस्तों जैसे कि आपका कीमती सामान ही कहीं पढ़ा है और बारिश हो रहा हो जाए उसे चोरी होने की आशंका हो तो भी आप आलस्य के कारण आप उसे सुरक्षित स्थान पर नहीं रखते हैं ऐसे में वह सामान चोरी हो जाती हैं और आपका व कीमती सामान चोरी होने से आपका आर्थिक रूप से नुकसान होता है यह एक छोटी सी असावधानी के कारण आपकी आलस्य के कारण।
2. क्रोध 
दोस्तों पीने के लिए कोई चीज है तो क्रोध। दोस्तों यह सत्य है परंतु यह कहां तक साथ है दोस्तों क्रोध मनुष्य को बहुत तरह से नुकसान पहुंचाता है दोस्तों क्रोध के कारण मनुष्य विभिन्न प्रकार से नुकसान कुछ मिलता है क्रोध के कारण कई बार रिश्ते नाते टूट जाते हैं। जिससे बाद में अपने क्रोध के कारण रिश्ते टूटने से हमें पछतावा होता है।
दोस्तों क्रोध के कारण कई बार हम कीमती सामानों को तोड़ देते हैं कई बार किसी अन्य के सामानों को भी तोड़ देते हैं क्रोध के कारण लोग अपने कीमती मोबाइल को भी तोड़ देते हैं टीवी को भी तोड़ देते हैं ऐसी बहुत सारे उदाहरण है दोस्तों कीमती सामानों को तोड़ते हैं नुकसान पहुंचाते हैं जबकि वह सामान हमारा अपना होता है और हमें आर्थिक रूप से नुकसान होता है और बाद में हम पछतावा होता है किसी और का भी सामान को क्षति पहुंचाते हैं जिससे हमें बाद में उसका भरपाई करना पड़ता है और इससे भी हमें पछतावा ही होता है दोस्तों।
3. मोह
दोस्तों कई बार हम मुंह में पड़ जाने के कारण अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं हम सही रास्ते में जाने की बजाय हम उस रास्ते से भटक जाते हैं जिसे कई लोगों को बहुत दुख होता है कई लोगों को मदद करने में हम पीछे हट जाते हैं कि नहीं तो हम मदद नहीं कर पाते हैं क्योंकि हम मोह में पड़ जाते हैं दोस्तों में पड़ जाने का और भी बहुत सारे नुकसान है उदाहरण के तौर पर कोई इंसान जब किसी स्त्री के मुंह में पड़ जाता है तो उसे उसे अपने माता-पिता का भी ख्याल नहीं रहता अपने माता-पिता को भी मारपीट करता है मुंह के कारण रिश्ते नातों को भी तोड़ने पर उतारू हो जाते हैं किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में ना काम हो जाने में भी मौका भूमिका होता है जिससे लाखों लोगों के कल्याण होने की बजाय उनका कल्याण हो जाता है दोस्तों। मुंह में पड़ जाने से इंसान का कार्य क्षमता कम हो जाता है उनमें आलसी भी पड़ जाता है कार्य करने की क्षमता भी घट जाती है कान्हा में भी पड़ जाता है वह डिप्रेशन में भी चला जाता है उससे से लोग ही आना शुरू हो जाता है जो अवगुण है इसके पश्चात कोई कार्य ठीक से ना होने के कारण उसमें क्रोध भी जन्म ले लेती है दोस्तों और क्रोध के भी आ जाने के कारण मद तथा मदसर भी उस इंसान पर लागू हो जाती है दोस्तों वह उसका सेवन करने के लिए मजबूर हो जाता है।
4. लोभ 
5. मद-
6. मत्सर


सात यौगिक चक्रों को जागृत करना या होना।
1. सहस्रार चक्र- चोटी का स्थान के पास 
2.आज्ञा चक्र - दोनों भौंहों के बीच।
3. विशुद्धाख्य चक्र -कंठ में।
4.अनाहत चक्र-हृदय में।
5.
6.
7.

कल्कि - कलह क्लेश से मुक्त करने वाला।




4. ब्राह्मण
शक्तिमान के सात आदर्शों के पालन करने की साथ-साथ छः अवगुणों को नियंत्रित करना अनिवार्य है। साथ ही साथ क्षत्रिय श्रेणी के नियमों का पालन करना या अनुभवी होना।

भय,क्रोध,चिंता और खिन्नता को नियंत्रिण करना या मुक्त होना।

मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

सात यौगिक चक्रों को जागृत करना या होना।
यह योग, प्राणायाम,आसन, ध्यान जप,तप से संभव है।

1. सहश्रार चक्र- चोटी का स्थान के पास 
2.आज्ञा चक्र - दोनों भौंहों के बीच।
3. विशुद्धाख्य चक्र - कंठ में।
4.अनाहत चक्र-हृदय में।
5.मणिपुर चक्र - नाभिकेन्द्र में।
6.स्वाधिष्ठान चक्र - नाभि से नीचे।
7. मूलाधार चक्र - गुदा के पास।

Sunday, August 27, 2023

मनुष्य के लिए सभी दु:ख़ो और बिमारियों से छुटकारा पाना हुआ आसान। स्वास्थ्य ( Health is wealth)


 मनुष्य के लिए सभी दु:ख़ो और बिमारियों से छुटकारा पाना हुआ आसान।


मनुष्य अपना भाग्य विधाता स्वयं है।
अज्ञानता ही दु:ख का कारण होता है।

 दुनिया में धरती पर इंसानों में दु:ख जो आता है वह तीन प्रकार से आता है।
 दु:ख तीन प्रकार का होता है- दैहिक दुख,दैविक दुख और भौतिक दुख।
(1) दैहिक दु:ख।
( 2) दैविक दु:ख।
( 2) भौतिक दु:ख।




(1) दैहिक दु:ख किसे कहते हैं?
 दुनिया में दैहिक दु:ख (5%) है।
- ईश्वर ने जो दु:ख देकर धरती पर भेजा है अर्थात जो इंसान जन्म से ही दु:ख देकर धरती पर आता है, उसे दैहिक दु:ख कहते हैं। जैसे - विकलांगता, अपंग, लंगड़ा,रुला,अंधा ,काना, होना इत्यादि।

(2) दैविक दु:ख किसे कहते हैं?
 दुनिया में दैविक दु:ख (5%) है।
धरती पर जन्म लेने के बाद जो दु:ख आया ,उसे दैविक दु:ख कहते हैं। जैसे - याद्दाश्त घर ला जाना, ब्रेन हेमरेज हो जाना, पैरालाइसिस होना, दुर्घटना हो जाना और किसी दुर्घटना के बाद विकलांगता, अपंग, लंगड़ा,रुला,अंधा ,काना, होना इत्यादि।

(3) भौतिक दु:ख किसे कहते हैं?
दुनिया में धरती पर ( 90%) इंसानों के पास भौतिक दु:ख  है। इंसानों के भौतिक सुख सुविधाओं को पाने के लिए, और जल्दी-जल्दी बढ़ाने के चक्कर में यह दु:ख खुद ही पाल लेता है।
भौतिक दु:ख जो होता है यह अनेक प्रकार के बिमारियों से होता है।

बिमारी जो होती है,वह तीन प्रकार से होती है - (1) वात (2) पीत  और  (3) कफ।

विवरण -
(1) वात की बिमारी इस प्रकार से होती है -
जो व्यक्ति खाना खाते समय, भोजन ग्रहण करते समय बात कर-कर के खाना खाता हो,उसे वात की बिमारी होती है।

वात रोग का मुल कारण जिसमें आहार, आनुवंशिक गड़बड़ी,यूरिक एसिड के लवणों काम उत्सर्जन होना आदि।
- इसलिए जब भी खाना खाएं । खाना चबा-चबाकर खाना चाहिए। जिससे खाना अर्थात भोजन पेट में जाने के बाद,खाना को पचाने के लिए जठर अग्नि के जलने से भोजन आसानी से पच सके और लवण बन सके।
लार+लवण = एसिड
एसिड खाना को पचाता है।
जिससे पेट में गैस नहीं बन पाता है और वात की बिमारी दुर होती है।

लक्षण -
 याद्दाश्त चला जाना।
दिमाग का चक्कर आना।
पैरालाइसिस हो जाना।
कोई अंग काम नहीं करना।
अंग शुना हो जाना।
अंग में दर्द होना ।
सरदर्द होना ।
इत्यादि।





(2) पीत की बिमारी इस प्रकार से होती है-
- इंसान के सोते, बैठते, खाते,पीते,नहाते,आते,जाते,चलते घूमते, फिरते हर एक क्षण प्रतिदिन 24 घंटा इंसान के शरीर में पीत बनता रहता है इसका काम है हमेशा बनना और यह पीत कंट्रोल होता है नियंत्रण होता है मुंह के लार से।


इसलिए हमें मुंह के लार को जिसे हम लोग थूक देते हैं उसे थूकना नहीं चाहिए बल्कि उसे अपने अंदर ले जाना चाहिए उसे पी जाना चाहिए उसे पेट में भेज देना चाहिए।

पानी भी मुर्गीयों की तरह घुट-घुटकर पीना चाहिए।
जिससे  मुंह का लार भी पानी के साथ पेट में चला जाए।

आप सभी जानते होंगे कि जब मुंह का लार जाएगा पेट में तो वह पीत में मिल जाएगा। जब पीत और लार दोनों मिलेगा तो लवण बनता है।
 पीत + लार = लवण।
लवन से एसिड बनेगा।
एसिड खाना को पचाता है।
इससे रस तैयार होता है,लत्थी-लत्थी तैयार होता है।
वही रस्सा ( maza ) खुश बनता है और वही खुश इंसान के पुरे शरीर में फैलता है,उसी आधार में इंसान का शरीर बनता है और मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।

लेकिन जब मुंह का लार पेट में नहीं जाएगा तो क्या होगा।
जब मुंह का लार पेट में रेगुलर लगातार नहीं जाएगा तो पीत बड़ा हो जाएगा और लार कम होने के कारण ,पीत की बिमारी हो जाएगी।

पीत का लक्षण (1) बा-बार तबीयत खराब हो जाना ।
(2) बार-बार मलेरिया हो जाना। (3) बार-बार ज्वर,बुखार,खांसी मलेरिया,दस्त, खुजली हो जाना।

यह सब बिमारी पीत का है।
यह बिमारी महिलाओं को ज्यादा होती है क्योंकि यह लोग कम पानी पीती हैं। महिलाओं को पथरी ज्यादा होती है क्योंकि ये लोग पेशाब को रोक कर छत रखती हैं।

पेशाब को जब रोक कर रखती हैं तो पेशाब में गंदे कण जम जाती है। इसलिए महिलाओं को ज्यादा वर्दी,खांसी होती है।

यह पीत तब कंट्रोल होगा जब इंसान पानी घुट-घुटकर पीयेगा मुंह का लार पानी के साथ मिलकर  जाएगा पेट में और पीत में मिल जाएगा।


पीत दोष 'अग्नि' और 'जल' इन दो तत्वों से मिलकर बना है। यह हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन और एंजाइम को नियंत्रित करता है। शरीर की गर्मी जैसे कि शरीर का तापमान ,पाचक अग्नि जैसी चीजें पीत द्वारा ही नियंत्रित होती है। पीत का संतुलित अवस्था में होना अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी है। शरीर में पेट और और छोटी आंत में पीत प्रमुखता से पाया जाता है। ऐसे लोग पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे कि कब्ज,अपने, एसिडिटी आदि से पीड़ित रहते हैं।पीत दोष के असंतुलित होते ही पाचक अग्नि (जठर अग्नि) कमजोर पड़ने लगती है। साथ ही हृदय और फेफड़ों में कफ इक्ट्ठा होने लगता है।

पीत का संतुलित अवस्था में होना इंसान के सेहत के लिए बहुत जरूरी है।

पीत का बनना न कम होना चाहिए न ज्यादा।


(3) कफ की बिमारी इस प्रकार से होती है-
- गले में बलगम को कफ के नाम से भी जाना जाता है। जब हमारे गले या नाक के पीछले हिस्से में बलगम जमा हो जाता है,तो इससे बहुत असुविधाजनक महसूस होता है।म्यूकस मेम्ब्रेन (mucus membrain) श्वसन प्रणाली की रक्षा करने और उसको सहारा देने के लिए कफ बनाती है। ये मेम्ब्रेन निम्न अंगों में होती है। मुंह,नाक,गला,साइनस, फेफड़े।

गले की नाक की ग्रंथी 1 दिन में कम से कम 1 से 2 लीटर बलगम का उत्पादन करती है। बलगम या कफ की अधिक मात्रा में होना परेशान करने वाली समस्या हो सकती है। 

इसके कारण घंटों बेचैनी रहना बार बार गला साफ करते रहना और खांसी जैसी बीमारी हो सकती है। ज्यादातर लोगों में यह एक अस्थाई समस्या होती है।

 हालांकि कुछ लोगों के लिए यह एक स्थिर समस्या बन जाती है।
 धूल और प्रदूषण की रोकथाम करके कफ के निर्माण में कमी की जा सकती और इसके लक्षणों को कम करने के लिए दवाएं भी उपलब्ध हैं।




पृथ्वी के महान आयुर्वेद दाता बागवट ने कहा है - भोजन अन्ते विषमभारि:।
अर्थात भोजन के अन्त में पानी पीना विष के समान है।

जब हम खाना खाते हैं या कुछ भी चीज खाते हैं तो वह पेट में चला जाता है यह तो हर इंसान जानता है। लेकिन इसके बाद क्या होता है इसके बारे में आप पूरी तरह से नहीं जानते होंगे। 

हमारे पेट में भोजन जाने के बाद हमारे शरीर में आग जलना शुरू हो जाती है। जिसे हम जठरअग्नि  कहते हैं।
यह 1घंटा 20 मीनट तक जलता है। वहीं जानवरों के पेट में 4 घंटे तक जलता है। 

 इससे हमारे शरीर में खाना को पचाता है।
इससे रस तैयार होता है,लत्थी-लत्थी तैयार होता है।
वही रस्सा ( maza ) खुश बनता है और वही खुश इंसान के पुरे शरीर में फैलता है,उसी आधार में इंसान का शरीर बनता है और मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।

तो इसी बीच जब हम पानी पीते हैं तो यह जठरअग्नि जलने के बजाय भुत जाती है। और इससे खाना पचने के बजाय सड़ जाती है और पेट में गैस बन जाती है। यह खून के साथ मिलकर हमारे पुरे शरीर में दौड़ती है और खुश को गंदा करती है।
यह गैस कैसा होता है। यह गैस ऐसा होता है,जब लोग पालते हैं और बदबू देती है।

हमारे शरीर में पेट में गैस बनने से ही हमारे शरीर में 200 से अधिक बिमारियों की शुरुआत हो जाती है।

इसलिए हमें खाना खाते समय भोजन ग्रहण करते समय पानी नहीं पीना चाहिए।

यदि हम भोजन को चबा-चबाकर खाएं तो पानी पीने की आवश्यकता नहीं होगी।

यदि ज्यादा प्यास लगे तो हल्का गर्म पानी पीयें।

भोजन करने से आधा से एक एक घंटा पहले या बाद में पानी पीयें।


Saturday, June 5, 2021

ब्राह्मण

4. ब्राह्मण
शक्तिमान के सात आदर्शों के पालन करने की साथ-साथ छः अवगुणों को नियंत्रित करना अनिवार्य है। साथ ही साथ क्षत्रिय श्रेणी के नियमों का पालन करना या अनुभवी होना।
भय,क्रोध,चिंता और खिन्नता को नियंत्रिण करना या मुक्त होना।

मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

सात यौगिक चक्रों को जागृत करना या होना।
यह योग, प्राणायाम,आसन, ध्यान जप,तप से संभव है।

कल्कि - कलह क्लेश से मुक्त करने वाला।


आध्यात्मिक शक्तियों के केन्द्र : यौगिक चक्र।
1. सहश्रार चक्र- चोटी का स्थान के पास ।
2.आज्ञा चक्र - दोनों भौंहों के बीच।
3. विशुद्धाख्य चक्र - कंठ में।
4.अनाहत चक्र-हृदय में।
5.मणिपुर चक्र - नाभिकेन्द्र में।
6.स्वाधिष्ठान चक्र - नाभि से नीचे।
7. मूलाधार चक्र - गुदा के पास।



प्रवचन -

न बोलने में नौ गुण:।

अनमोल वचन संग्रह।

मोक्ष से संबंधित प्रश्न और उसके जवाब।

ओम् नमः शिवाय।
गायत्री मंत्र।

क्षत्रिय

3. क्षत्रिय
शक्तिमान के साथ आदर्श।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।

सुविचारों का संग्रह।

आध्यात्मिक कहानियां,गाने,भजन,गीत, कीर्तन।

मौसम - मौसम की जानकारी।

गीता ज्ञान - की निश्चित जानकारी।

शक्तिमान के साथ आदर्श।
काम,क्रोध,मोह,लोभ,मद तथा मत्सर पर नियंत्रण करना।

हमेशा मुख में 'ओम मंत्र' का गुंजना।

पंच ज्ञान इन्द्रियों में नियंत्रण।
ज्ञान इंद्रियां - आंख,नाक,कान,जीभ और त्वचा।

पंचतत्व - अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी और आकाश।

मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

भय,क्रोध,चिंता और खिन्नता को नियंत्रिण करना या मुक्त होना।

यह छः अवगुणों पर नियंत्रण।
1. काम 
2. क्रोध 
3. मोह
4. लोभ 
5. मद 
6. मत्सर

चित्र, चलचित्र- आध्यात्मिक। पुराणें, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता।

श्रीमद्भगवद्गीता के अमृतपान से साहस,हिम्मत,समता,सहजता, स्नेह,शांति,धर्म आदि दैवी गुण विकसित होते हैं तथा अधर्म और शोषण और का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है।


ब्राहमुहूर्त में उठना चाहिए। ब्राहमुहूर्त में उठने से आयु, बुद्धि,बल एवं अयोग्यता बढ़ती है।


वेदों का स्वाध्याय।

सूर्योपासना ( सूर्य-गायत्री मंत्र) सूर्य-नमस्कार।

योग,प्राणायाम,जप तप, ध्यान को अपने जीवन में अपनाना अनिवार्य।

योग- यौगिक क्रियाएं 2। यौगिक मुद्राएं 8।  तन-मन के स्वास्थ्य हेतु सरल साधन - योगासन।18

प्राणायाम - जीवन में नवचेतना का स्रोत: प्राणायाम।
प्राणायाम का अर्थ है प्राणों का निर्माण।
जाबालोपनिषद् में प्राणायाम को समस्त रोंगो का नाशकर्ता बताया गया है। प्राणायाम के द्वारा हमारी प्राणशक्ति का अद्भुत विकास होता है।

जब योग और मुद्रा का अभ्यास किया जाता है, तो चक्र संतुलित हो जाते हैं और हमारी प्रणाली को शारीरिक और भावनात्मक दोनों ही तरह से एक स्थिर, संतुलित तरीके से कार्य करने में सक्षम बनाते हैं। इन में कुछ योग आसन शामिल हैं:

जब तक चक्र जागृत ना हो तब तक इंसान को उसके होने का पता भी नहीं चलता है। जब यह जागृत होता है तभी उस चक्र का होने का इंसान को अनुभव होता है।

परिभाषा।
1. काम - (आलस्य)
1.   दोस्तों काम आधारित आलस्य आलस्य निर्धनता की जननी है आलस्य करने से मनुष्य का विभिन्न तरह से नुकसान होता है दोस्तों जैसे कि आपका कीमती सामान ही कहीं पढ़ा है और बारिश हो रहा हो जाए उसे चोरी होने की आशंका हो तो भी आप आलस्य के कारण आप उसे सुरक्षित स्थान पर नहीं रखते हैं ऐसे में वह सामान चोरी हो जाती हैं और आपका व कीमती सामान चोरी होने से आपका आर्थिक रूप से नुकसान होता है यह एक छोटी सी असावधानी के कारण आपकी आलस्य के कारण।
2. क्रोध 
दोस्तों पीने के लिए कोई चीज है तो क्रोध। दोस्तों यह सत्य है परंतु यह कहां तक साथ है दोस्तों क्रोध मनुष्य को बहुत तरह से नुकसान पहुंचाता है दोस्तों क्रोध के कारण मनुष्य विभिन्न प्रकार से नुकसान कुछ मिलता है क्रोध के कारण कई बार रिश्ते नाते टूट जाते हैं। जिससे बाद में अपने क्रोध के कारण रिश्ते टूटने से हमें पछतावा होता है।
दोस्तों क्रोध के कारण कई बार हम कीमती सामानों को तोड़ देते हैं कई बार किसी अन्य के सामानों को भी तोड़ देते हैं क्रोध के कारण लोग अपने कीमती मोबाइल को भी तोड़ देते हैं टीवी को भी तोड़ देते हैं ऐसी बहुत सारे उदाहरण है दोस्तों कीमती सामानों को तोड़ते हैं नुकसान पहुंचाते हैं जबकि वह सामान हमारा अपना होता है और हमें आर्थिक रूप से नुकसान होता है और बाद में हम पछतावा होता है किसी और का भी सामान को क्षति पहुंचाते हैं जिससे हमें बाद में उसका भरपाई करना पड़ता है और इससे भी हमें पछतावा ही होता है दोस्तों।
3. मोह
दोस्तों कई बार हम मुंह में पड़ जाने के कारण अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं हम सही रास्ते में जाने की बजाय हम उस रास्ते से भटक जाते हैं जिसे कई लोगों को बहुत दुख होता है कई लोगों को मदद करने में हम पीछे हट जाते हैं कि नहीं तो हम मदद नहीं कर पाते हैं क्योंकि हम मोह में पड़ जाते हैं दोस्तों में पड़ जाने का और भी बहुत सारे नुकसान है उदाहरण के तौर पर कोई इंसान जब किसी स्त्री के मुंह में पड़ जाता है तो उसे उसे अपने माता-पिता का भी ख्याल नहीं रहता अपने माता-पिता को भी मारपीट करता है मुंह के कारण रिश्ते नातों को भी तोड़ने पर उतारू हो जाते हैं किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में ना काम हो जाने में भी मौका भूमिका होता है जिससे लाखों लोगों के कल्याण होने की बजाय उनका कल्याण हो जाता है दोस्तों। मुंह में पड़ जाने से इंसान का कार्य क्षमता कम हो जाता है उनमें आलसी भी पड़ जाता है कार्य करने की क्षमता भी घट जाती है कान्हा में भी पड़ जाता है वह डिप्रेशन में भी चला जाता है उससे से लोग ही आना शुरू हो जाता है जो अवगुण है इसके पश्चात कोई कार्य ठीक से ना होने के कारण उसमें क्रोध भी जन्म ले लेती है दोस्तों और क्रोध के भी आ जाने के कारण मद तथा मदसर भी उस इंसान पर लागू हो जाती है दोस्तों वह उसका सेवन करने के लिए मजबूर हो जाता है।
4. लोभ 
5. मद-
6. अहंकार


सात यौगिक चक्रों को जागृत करना या होना।
1. सहश्रार चक्र- चोटी का स्थान के पास ।
2.आज्ञा चक्र - दोनों भौंहों के बीच।
3. विशुद्धाख्य चक्र - कंठ में।
4.अनाहत चक्र-हृदय में।
5.मणिपुर चक्र - नाभिकेन्द्र में।
6.स्वाधिष्ठान चक्र - नाभि से नीचे।
7. मूलाधार चक्र - गुदा के पास।

कल्कि - कलह क्लेश से मुक्त करने वाला।

पृथ्वी अर्थात संसार अर्थात दुनिया।
 संसार के महाद्वीप -
दुनिया के सभी देशों के नाम - जानकारी।

हमारा अपना महाद्वीप -एसिया।

एशिया महाद्वीपों की देशों की संख्या -

फिर अपना देश-भारत।
भारत देश के राज्यों की संख्या।

झारखंड राज्य के जिलों की संख्या -

हमारा जिला रांची के प्रखण्डों की संख्या।

हमारा प्रखण्ड अनगड़ा के पंचायतों की संख्या।

हमारा पंचायत कुच्चू के गांवों की संख्या।

हमारा गांव हुण्डरू के टोंलो की संख्या।

गांव - टोंलों के घरों की संख्या।


दुनिया के सभी देशों के नाम - जानकारी।

स्वास्थ्य
स्वास्थ्य ही धन है।
शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए या होने के लिए  हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक होता है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पौष्टिक आहार के साथ अनेक बिमारियों से बचने के लिए बिमारियों की जानकारी और उसका इलाज की जानकारी की आवश्यकता होती है।
बिमारी फैलता कैसे हैं - 
हम ( मनुष्य ) इससे कैसे बच सकता है।



कबीर अमृतवाणी-

वैश्य

2.वैश्य
शक्तिमान के साथ आदर्श।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।

मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

कौशल क्षमता। की कार्यों में कौशोलिक।

शुद्र

1. शुद्र 
शक्तिमान के साथ आदर्शो के विपरीत होना।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।






मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।
1. भोजन
2. वस्त्र
3. मकान


नींद लेने का समय वह स्वभाव।

नींद से उठने का समय वह स्वभाव।

कौशल क्षमता। घरेलू काम काज का थोड़ा बहुत अनुभव।

सूर्योंदय के बाद उठना। सूर्योंदय के बाद उठने से आलस्य,प्रमाद वह तमोगुण बढ़ता है, आयुष्य नष्ट होता है।

सेवा देने का कार्य करना।
मजदुरी,पत्थर तोड़ने वाला,ईंट ढोने वाला। इत्यादि।

Sunday, May 23, 2021

मनुष्य की मूलभूत चीज वस्त्र

मनुष्य की मूलभूत चीजें

 


मनुष्य की मूलभूत चीजें।

(1) भोजन, (2) वस्त्र और (3) मकान।


(1) भोजन

ऐसा कोइ भी पदार्थ जो शर्करा (कार्बोहाइड्रेट), वसा, जल तथा/अथवा प्रोटीन से बना हो और जीव जगत द्वारा ग्रहण किया जा सके, उसे भोजन कहते हैं। जीव न केवल जीवित रहने के लिए बल्कि स्वस्थ और सक्रिय जीवन बिताने के लिए भोजन करते हैं। भोजन में अनेक पोषक तत्व होते हैं जो शरीर का विकास करते हैं, उसे स्वस्थ रखते हैं और शक्ति प्रदान करते हैं। भोजन में ऊर्जा का त्वरित स्रोत है



अनुक्रम

1 भोजन के विविध अवयव

1.1 शक्तिदायक भोजन :

1.2 शरीर-निर्माण करने वाले भोजन:

1.3 संरक्षण देने वाले भोजन :

2 पोषकों के कार्य और उनके स्रोत :

2.1 प्रोटीन :

2.2 वसा :

2.3 कार्बोहाइड्रेट :

2.4 विटामिन

2.4.1 विटामिन ए :

2.4.2 विटामिन बी 1 (थायामिन)

2.4.3 विटामिन बी-2 (रिबोफ्लेविन) :

2.4.4 नियांसिन

2.4.5 विटामिन सी :

2.4.6 विटामिन डी :

2.5 कैल्शियम और फास्फोरस :

2.6 लौहतत्व :

3 भोजन से सम्बन्धित भारतीय ग्रंथ

4 इन्हें भी देखें

5 बाहरी कड़ियाँ

भोजन के विविध अवयव

भोजन में पाए जाने वाले आवश्यक तत्व हैं - कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और तेल, विटामिन और खनिज। इसके अतिरिक्त भोजन में सभी पोषक तत्व होने चाहिए ; अर्थात् मांसपेशियों और उत्तकों को सबल बनाने के लिए प्रोटीन, ऊर्जा या शक्ति प्रदान करने के लिए कार्बोहाइड्रेट और वसा, मजबूत हडि्डयों और रक्त के विकास के लिए खनिज लवण और स्वस्थ जीवन एवं शारीरिक विकास के लिए विटामिन।


शरीर में विभिन्न पोषक तत्वों- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन और खनिज की आवश्यकता मनुष्य की आयु, लिंग, शारीरिक श्रम और शरीर की दशा पर निर्भर करती है। शारीरिक श्रम करने वाले एक मजदूर को दफ्तर में काम करने वाले व्यक्ति की अपेक्षा शक्ति प्रदान करने वाले भोजन की कहीं अधिक आवश्यकता होती है। गर्भवती औरतों और स्तनपान करने वाले बच्चों की माताओं को शारीरिक परिवर्तनों के कारण अधिक प्रोटीन और खनिजों की आवश्यकता होती है।


इसलिए यह जरूरी है कि हर व्यक्ति अपनी आयु, लिंग, काम की दशा आदि के अनुसार अपने भोजन में सभी आवश्यक पोषक तत्व शामिल करे। मनुष्य की इन आवश्यकताओं को पूरा करने वाले भोजन को संतुलित भोजन (बैलेंस्ड फुड) कहते हैं।


निम्नलिखित खाद्य वर्ग की वस्तुओं को सूझबूझ के साथ मिलाकर संतुलित भोजन तैयार किया जा सकता है।


शक्तिदायक भोजन :

कार्बोहाइड्रेट तथा वसा युक्त भोजन को शक्तिदायक भोजन कहते हैं। दालें, कन्दमूल, सूखे मेवे, चीनी, तेल और वसा इस वर्ग में आते हैं।


शरीर-निर्माण करने वाले भोजन:

अधिक प्रोटीन वाला भोजन शरीर निर्माण करने वाला भोजन कहलाता है। भारतीय नस्ल की देशी गाय का दुध, घी,दालें, तिलहन, गरी और कम वसा वाले तिलहनों के उत्पाद इस वर्ग में आते हैं।


संरक्षण देने वाले भोजन :

जिस भोजन में प्रोटीन, विटामिन और खनिज अधिक पाये जाते हैं उसे संरक्षण देने वाला भोजन कहते हैं। दूध और दूध के उत्पाद, अंडे, कलेजी, हरी पत्तेदार सब्जियाँ और फल इस वर्ग में आते हैं।


भारत में अधिकांश लोग अधिक अनाज खाते हैं और उनके भोजन में दूसरे शक्तिवर्द्धक तत्वों की कमी होती है। मोटे तौर पर भोजन में बदलाव लाकर उसमें सुधार किया जा सकता है, अर्थात् जहां कहीं भोजन में अन्न की अधिकता हो, अन्न की मात्रा कम की जाए और उसके बजाए भोजन में शरीर की प्रोटीन, विटामिन और खनिजों की आवश्यकता पूरी करने वाले तत्व बढ़ाए जाएं। जहां कहीं इस प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध हों उनसे और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रयोग से, परिरक्षित भोजन की सहायता से, पौष्टिक आहार में सुधार लाया जा सकता है। भोजन तैयार करने की सुधरी विधियों का प्रयोग करके भोजन पकाने के दौरान पोषक तत्वों को होने वाली हानि को रोका जा सकता है। भोजन को अधिक उबालने या तलने से बहुत से पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि खाना सही तरीके से पकाया जाए।


पोषकों के कार्य और उनके स्रोत :

प्रोटीन :

शरीर में उत्तकों, मांसपेशियों और रक्त जैसे महत्वपूर्ण द्रव्यों का निर्माण, संक्रमण का सामना करने के लिए इन्जाइम और रोग प्रतिकारक तत्वों के विकास में सहायता।


स्रोत :- ताजा या सुखाया हुआ दूध, पनीर, दही, तिलहन और गिरी, सोयाबीन, खमीर, दालें, मांस, कलेजी, मछली, अण्डे और अनाज।


वसा :

शक्ति के संकेिन्द्रत स्रोत का काम करना और घुलनशील विटामिनों की पूर्ति करना।


स्रोत : मक्खन, घी, वनस्पति तेल और वसा, तिलहन और गिरी, मछली का तेल और अण्डे की जर्दी।


कार्बोहाइड्रेट :

शरीर को शक्ति प्रदान करना।


स्रोत : अनाज, बाजरा, कन्दमूल जैसे कि आलू, चुकन्दर, अरवी


, टेपिओका आदि और चीनी तथा गुड़।


विटामिन

विटामिन ए :

शरीर की चमड़ी और श्लेष्म झिल्ली को स्वस्थ रखना और रात्रि अन्धता से बचाव।


स्रोत : मछली का तेल, कलेजी, दूध के उत्पाद -दही, मक्खन, घी- गाजर, फल और पत्तेदार सिब्जयां।


विटामिन बी 1 (थायामिन)

सामान्य भूख, पाचन शक्ति तथा स्वस्थ स्नायु प्रणाली और भोजन की शर्करा को शक्ति में बदलना।


स्रोत : कलेजी, अण्डे, फलियां, दालें, गिरी, तिलहन, खमीर, अनाज, सेला चावल।


विटामिन बी-2 (रिबोफ्लेविन) :

कोशिकाओं को आक्सीजन के उपयोग में सहायता देना, आंखों को स्वस्थ और साफ रखना तथा नाम मुंह के आसपास पपड़ी न जमने देना तथा मुंह के कोरों को फटने से बचाना।


स्रोत : दूध, सपरेटा, दही, पनीर, अण्डे, कलेजी और पत्तेदार सिब्जयां।


नियांसिन

चमड़ी, पेट, अंतिड़यों और स्नायु तंत्र को स्वस्थ रखना।


स्रोत : दालें, साबुत अनाज, मांस, कलेजी, खमीर, तिलहन, गिरी और फलियां।


विटामिन सी :

कोशिकाओं को मजबूत बनाना, रक्त वाहिक की भित्तियों को शक्तिशाली बनाना, संक्रमण की रोकथाम और रोग से जल्दी मुक्ति पाने की शक्ति प्रदान करना।


स्रोत : आंवला, अमरूद, नींबू की जाति के फल, ताजी सिब्जयं और अंकुरित दालें।


विटामिन डी :

शरीर को काफी मात्रा में कैिल्शयम ग्रहण करने और हड्डी मजबूत बनाने में सहायता देता है।


स्रोत : सूर्य का प्रकाश , मक्खन, अंडे , दूध, पनीर, मछली, तेल और घी।


कैल्शियम और फास्फोरस :

हडि्डयां और दांत बनाने, रक्त बढ़ाने तथा पेशियों और नाड़ियों को ठीक रूप् से काम करने में सहायक होता है।


स्रोत : दूध और इसके उत्पाद, पत्तेदार सिब्जयां, छोटी मछली और अनाज आदि।


लौहतत्व :

प्रोटीन के साथ मिलकर हीमोग्लोबीन (रक्त में एक लाल पदार्थ जो कोषिकाओं में आक्सीजन ले जाता है) बनाना।


स्रोत : कलेजी, गुर्दा, अंडे, सिब्जयां, तिलहन-गिरी, फलियां, दालें, गुड़, सूखे मेवे और पत्तेदार सिब्जयां।





(2)वस्त्र

मनुष्य को सचमुच मनुष्य और इंसानियत बनाए रखने के लिए वस्त्र मनुष्य का मूलभूत आवश्यकताएं हैं।

मनुष्य अपने शरीर के लिए आरामदायक वस्त्र पहनते हैं।

अलग-अलग ऋतु के अनुसार लोग अलग-अलग वस्त्रों को पढ़ाते हैं वस्तु का उपयोग करते हैं जो उनके लिए आरामदायक होता है।

 वस्त्र या कपड़ा एक मानव-निर्मित चीज है जो प्राकृतिक या कृत्रिम तंतुओं के नेटवर्क से निर्मित होती है। इन तंतुओं को सूत या धागा कहते हैं। धागे का निर्माण कच्चे ऊन, कपास (रूई) या किसी अन्य पदार्थ को करघे की सहायता से ऐंठकर किया जाता है। एक फ्लेक्सिबल सामग्री है जिसमें कृत्रिम फायबर धागे का समावेश रहता है। लंबे धागे का उत्पादन करने के लिए ऊन, फ्लेक्स, सूती अथवा अन्य कच्चे तंतु कपाट्या से तैयार किए जाते हैं। कपडे बुनना, क्रॉसिंग, गाठना, बुनाई, टॅटिंग, फेलिंग, ब्रेडिंग करके कपडा तैयार किया जाता है।




(3) मकान 

घर उस आवास या भवन को कहते हैं जो किसी मानव के निवास के काम आती हो। घर के अन्तर्गत साधारण झोपड़ी से लेकर गगनचुम्बी इमारतें शामिल हैं।


घर के विभिन्न भाग

प्रांगण (atrum)

अटारी (attic)

कुन्ज (alcove)

तलघर (basement)

स्नानगृह (bathroom)

शौचालय (toilet)

शयनकक्ष (bedroom)

शिशुकक्ष (nursery- infant bedroom)

रक्षागृह (conservatory)

भोजनकक्ष (dining-room)

बैठक (living-room/sitting-room/family-room)

प्रवेशकक्ष (foyer/ entrance hall)

यानगृह (garage)

गलियारा (hallway/passage)

रसोईघर (kitchen)

आहार-अलमारी (larder)

धुलाई कक्ष (laundry room)

पुस्तकालय (library)

स्वास्थ्य ही धन है।

 

मनुष्य की मूलभूत चीजें हैं भोजन वस्त्र और मकान।


01. हमें भोजन करना चाहिए। शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए। भोजन मनुष्य का आहार है परंतु भोजन ऐसा होना चाहिए जो हमारे शरीर की पोषक तत्व को पूरा कर सकें जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे और लंबे समय तक कार्य करने में सक्षम बना रहे।
मनुष्य जीवन में भोजन अलग-अलग लोगों की क्षमताओं के कारण, भोजन की मात्रा पौष्टिक  भी हो सकती है। किसी  में पोस्टिक कम हो सकती है किसी में पौष्टिक ज्यादा हो सकती है।

 इसमें मनुष्य की अपनी उपलब्ध कराने की क्षमता पर निर्भर करती है। और भोजन की जानकारियां होने पर निर्भर करती है लोगों के पास जैसी जानकारियां होंगी वैसी ही सब्जियां या आहार उपलब्ध कराएंगे और उसका सेवन सकेंगे।






























































मोक्ष वेद

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