मनुष्य अपना भाग्य विधाता स्वयं है।
अज्ञानता ही दु:ख का कारण होता है।
दुनिया में धरती पर इंसानों में दु:ख जो आता है वह तीन प्रकार से आता है।
दु:ख तीन प्रकार का होता है- दैहिक दुख,दैविक दुख और भौतिक दुख।
(1) दैहिक दु:ख।
( 2) दैविक दु:ख।
( 2) भौतिक दु:ख।
(1) दैहिक दु:ख किसे कहते हैं?
दुनिया में दैहिक दु:ख (5%) है।
- ईश्वर ने जो दु:ख देकर धरती पर भेजा है अर्थात जो इंसान जन्म से ही दु:ख देकर धरती पर आता है, उसे दैहिक दु:ख कहते हैं। जैसे - विकलांगता, अपंग, लंगड़ा,रुला,अंधा ,काना, होना इत्यादि।
(2) दैविक दु:ख किसे कहते हैं?
दुनिया में दैविक दु:ख (5%) है।
धरती पर जन्म लेने के बाद जो दु:ख आया ,उसे दैविक दु:ख कहते हैं। जैसे - याद्दाश्त घर ला जाना, ब्रेन हेमरेज हो जाना, पैरालाइसिस होना, दुर्घटना हो जाना और किसी दुर्घटना के बाद विकलांगता, अपंग, लंगड़ा,रुला,अंधा ,काना, होना इत्यादि।
(3) भौतिक दु:ख किसे कहते हैं?
दुनिया में धरती पर ( 90%) इंसानों के पास भौतिक दु:ख है। इंसानों के भौतिक सुख सुविधाओं को पाने के लिए, और जल्दी-जल्दी बढ़ाने के चक्कर में यह दु:ख खुद ही पाल लेता है।
भौतिक दु:ख जो होता है यह अनेक प्रकार के बिमारियों से होता है।
बिमारी जो होती है,वह तीन प्रकार से होती है - (1) वात (2) पीत और (3) कफ।
विवरण -
(1) वात की बिमारी इस प्रकार से होती है -
जो व्यक्ति खाना खाते समय, भोजन ग्रहण करते समय बात कर-कर के खाना खाता हो,उसे वात की बिमारी होती है।
वात रोग का मुल कारण जिसमें आहार, आनुवंशिक गड़बड़ी,यूरिक एसिड के लवणों काम उत्सर्जन होना आदि।
- इसलिए जब भी खाना खाएं । खाना चबा-चबाकर खाना चाहिए। जिससे खाना अर्थात भोजन पेट में जाने के बाद,खाना को पचाने के लिए जठर अग्नि के जलने से भोजन आसानी से पच सके और लवण बन सके।
लार+लवण = एसिड
एसिड खाना को पचाता है।
जिससे पेट में गैस नहीं बन पाता है और वात की बिमारी दुर होती है।
लक्षण -
याद्दाश्त चला जाना।
दिमाग का चक्कर आना।
पैरालाइसिस हो जाना।
कोई अंग काम नहीं करना।
अंग शुना हो जाना।
अंग में दर्द होना ।
सरदर्द होना ।
इत्यादि।
(2) पीत की बिमारी इस प्रकार से होती है-
- इंसान के सोते, बैठते, खाते,पीते,नहाते,आते,जाते,चलते घूमते, फिरते हर एक क्षण प्रतिदिन 24 घंटा इंसान के शरीर में पीत बनता रहता है इसका काम है हमेशा बनना और यह पीत कंट्रोल होता है नियंत्रण होता है मुंह के लार से।
इसलिए हमें मुंह के लार को जिसे हम लोग थूक देते हैं उसे थूकना नहीं चाहिए बल्कि उसे अपने अंदर ले जाना चाहिए उसे पी जाना चाहिए उसे पेट में भेज देना चाहिए।
पानी भी मुर्गीयों की तरह घुट-घुटकर पीना चाहिए।
जिससे मुंह का लार भी पानी के साथ पेट में चला जाए।
आप सभी जानते होंगे कि जब मुंह का लार जाएगा पेट में तो वह पीत में मिल जाएगा। जब पीत और लार दोनों मिलेगा तो लवण बनता है।
पीत + लार = लवण।
लवन से एसिड बनेगा।
एसिड खाना को पचाता है।
इससे रस तैयार होता है,लत्थी-लत्थी तैयार होता है।
वही रस्सा ( maza ) खुश बनता है और वही खुश इंसान के पुरे शरीर में फैलता है,उसी आधार में इंसान का शरीर बनता है और मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
लेकिन जब मुंह का लार पेट में नहीं जाएगा तो क्या होगा।
जब मुंह का लार पेट में रेगुलर लगातार नहीं जाएगा तो पीत बड़ा हो जाएगा और लार कम होने के कारण ,पीत की बिमारी हो जाएगी।
पीत का लक्षण (1) बा-बार तबीयत खराब हो जाना ।
(2) बार-बार मलेरिया हो जाना। (3) बार-बार ज्वर,बुखार,खांसी मलेरिया,दस्त, खुजली हो जाना।
यह सब बिमारी पीत का है।
यह बिमारी महिलाओं को ज्यादा होती है क्योंकि यह लोग कम पानी पीती हैं। महिलाओं को पथरी ज्यादा होती है क्योंकि ये लोग पेशाब को रोक कर छत रखती हैं।
पेशाब को जब रोक कर रखती हैं तो पेशाब में गंदे कण जम जाती है। इसलिए महिलाओं को ज्यादा वर्दी,खांसी होती है।
यह पीत तब कंट्रोल होगा जब इंसान पानी घुट-घुटकर पीयेगा मुंह का लार पानी के साथ मिलकर जाएगा पेट में और पीत में मिल जाएगा।
पीत दोष 'अग्नि' और 'जल' इन दो तत्वों से मिलकर बना है। यह हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन और एंजाइम को नियंत्रित करता है। शरीर की गर्मी जैसे कि शरीर का तापमान ,पाचक अग्नि जैसी चीजें पीत द्वारा ही नियंत्रित होती है। पीत का संतुलित अवस्था में होना अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी है। शरीर में पेट और और छोटी आंत में पीत प्रमुखता से पाया जाता है। ऐसे लोग पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे कि कब्ज,अपने, एसिडिटी आदि से पीड़ित रहते हैं।पीत दोष के असंतुलित होते ही पाचक अग्नि (जठर अग्नि) कमजोर पड़ने लगती है। साथ ही हृदय और फेफड़ों में कफ इक्ट्ठा होने लगता है।
पीत का संतुलित अवस्था में होना इंसान के सेहत के लिए बहुत जरूरी है।
पीत का बनना न कम होना चाहिए न ज्यादा।
(3) कफ की बिमारी इस प्रकार से होती है-
- गले में बलगम को कफ के नाम से भी जाना जाता है। जब हमारे गले या नाक के पीछले हिस्से में बलगम जमा हो जाता है,तो इससे बहुत असुविधाजनक महसूस होता है।म्यूकस मेम्ब्रेन (mucus membrain) श्वसन प्रणाली की रक्षा करने और उसको सहारा देने के लिए कफ बनाती है। ये मेम्ब्रेन निम्न अंगों में होती है। मुंह,नाक,गला,साइनस, फेफड़े।
गले की नाक की ग्रंथी 1 दिन में कम से कम 1 से 2 लीटर बलगम का उत्पादन करती है। बलगम या कफ की अधिक मात्रा में होना परेशान करने वाली समस्या हो सकती है।
इसके कारण घंटों बेचैनी रहना बार बार गला साफ करते रहना और खांसी जैसी बीमारी हो सकती है। ज्यादातर लोगों में यह एक अस्थाई समस्या होती है।
हालांकि कुछ लोगों के लिए यह एक स्थिर समस्या बन जाती है।
धूल और प्रदूषण की रोकथाम करके कफ के निर्माण में कमी की जा सकती और इसके लक्षणों को कम करने के लिए दवाएं भी उपलब्ध हैं।
पृथ्वी के महान आयुर्वेद दाता बागवट ने कहा है - भोजन अन्ते विषमभारि:।
अर्थात भोजन के अन्त में पानी पीना विष के समान है।
जब हम खाना खाते हैं या कुछ भी चीज खाते हैं तो वह पेट में चला जाता है यह तो हर इंसान जानता है। लेकिन इसके बाद क्या होता है इसके बारे में आप पूरी तरह से नहीं जानते होंगे।
हमारे पेट में भोजन जाने के बाद हमारे शरीर में आग जलना शुरू हो जाती है। जिसे हम जठरअग्नि कहते हैं।
यह 1घंटा 20 मीनट तक जलता है। वहीं जानवरों के पेट में 4 घंटे तक जलता है।
इससे हमारे शरीर में खाना को पचाता है।
इससे रस तैयार होता है,लत्थी-लत्थी तैयार होता है।
वही रस्सा ( maza ) खुश बनता है और वही खुश इंसान के पुरे शरीर में फैलता है,उसी आधार में इंसान का शरीर बनता है और मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
तो इसी बीच जब हम पानी पीते हैं तो यह जठरअग्नि जलने के बजाय भुत जाती है। और इससे खाना पचने के बजाय सड़ जाती है और पेट में गैस बन जाती है। यह खून के साथ मिलकर हमारे पुरे शरीर में दौड़ती है और खुश को गंदा करती है।
यह गैस कैसा होता है। यह गैस ऐसा होता है,जब लोग पालते हैं और बदबू देती है।
हमारे शरीर में पेट में गैस बनने से ही हमारे शरीर में 200 से अधिक बिमारियों की शुरुआत हो जाती है।
इसलिए हमें खाना खाते समय भोजन ग्रहण करते समय पानी नहीं पीना चाहिए।
यदि हम भोजन को चबा-चबाकर खाएं तो पानी पीने की आवश्यकता नहीं होगी।
यदि ज्यादा प्यास लगे तो हल्का गर्म पानी पीयें।
भोजन करने से आधा से एक एक घंटा पहले या बाद में पानी पीयें।