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Sunday, August 27, 2023

मनुष्य के लिए सभी दु:ख़ो और बिमारियों से छुटकारा पाना हुआ आसान। स्वास्थ्य ( Health is wealth)


 मनुष्य के लिए सभी दु:ख़ो और बिमारियों से छुटकारा पाना हुआ आसान।


मनुष्य अपना भाग्य विधाता स्वयं है।
अज्ञानता ही दु:ख का कारण होता है।

 दुनिया में धरती पर इंसानों में दु:ख जो आता है वह तीन प्रकार से आता है।
 दु:ख तीन प्रकार का होता है- दैहिक दुख,दैविक दुख और भौतिक दुख।
(1) दैहिक दु:ख।
( 2) दैविक दु:ख।
( 2) भौतिक दु:ख।




(1) दैहिक दु:ख किसे कहते हैं?
 दुनिया में दैहिक दु:ख (5%) है।
- ईश्वर ने जो दु:ख देकर धरती पर भेजा है अर्थात जो इंसान जन्म से ही दु:ख देकर धरती पर आता है, उसे दैहिक दु:ख कहते हैं। जैसे - विकलांगता, अपंग, लंगड़ा,रुला,अंधा ,काना, होना इत्यादि।

(2) दैविक दु:ख किसे कहते हैं?
 दुनिया में दैविक दु:ख (5%) है।
धरती पर जन्म लेने के बाद जो दु:ख आया ,उसे दैविक दु:ख कहते हैं। जैसे - याद्दाश्त घर ला जाना, ब्रेन हेमरेज हो जाना, पैरालाइसिस होना, दुर्घटना हो जाना और किसी दुर्घटना के बाद विकलांगता, अपंग, लंगड़ा,रुला,अंधा ,काना, होना इत्यादि।

(3) भौतिक दु:ख किसे कहते हैं?
दुनिया में धरती पर ( 90%) इंसानों के पास भौतिक दु:ख  है। इंसानों के भौतिक सुख सुविधाओं को पाने के लिए, और जल्दी-जल्दी बढ़ाने के चक्कर में यह दु:ख खुद ही पाल लेता है।
भौतिक दु:ख जो होता है यह अनेक प्रकार के बिमारियों से होता है।

बिमारी जो होती है,वह तीन प्रकार से होती है - (1) वात (2) पीत  और  (3) कफ।

विवरण -
(1) वात की बिमारी इस प्रकार से होती है -
जो व्यक्ति खाना खाते समय, भोजन ग्रहण करते समय बात कर-कर के खाना खाता हो,उसे वात की बिमारी होती है।

वात रोग का मुल कारण जिसमें आहार, आनुवंशिक गड़बड़ी,यूरिक एसिड के लवणों काम उत्सर्जन होना आदि।
- इसलिए जब भी खाना खाएं । खाना चबा-चबाकर खाना चाहिए। जिससे खाना अर्थात भोजन पेट में जाने के बाद,खाना को पचाने के लिए जठर अग्नि के जलने से भोजन आसानी से पच सके और लवण बन सके।
लार+लवण = एसिड
एसिड खाना को पचाता है।
जिससे पेट में गैस नहीं बन पाता है और वात की बिमारी दुर होती है।

लक्षण -
 याद्दाश्त चला जाना।
दिमाग का चक्कर आना।
पैरालाइसिस हो जाना।
कोई अंग काम नहीं करना।
अंग शुना हो जाना।
अंग में दर्द होना ।
सरदर्द होना ।
इत्यादि।





(2) पीत की बिमारी इस प्रकार से होती है-
- इंसान के सोते, बैठते, खाते,पीते,नहाते,आते,जाते,चलते घूमते, फिरते हर एक क्षण प्रतिदिन 24 घंटा इंसान के शरीर में पीत बनता रहता है इसका काम है हमेशा बनना और यह पीत कंट्रोल होता है नियंत्रण होता है मुंह के लार से।


इसलिए हमें मुंह के लार को जिसे हम लोग थूक देते हैं उसे थूकना नहीं चाहिए बल्कि उसे अपने अंदर ले जाना चाहिए उसे पी जाना चाहिए उसे पेट में भेज देना चाहिए।

पानी भी मुर्गीयों की तरह घुट-घुटकर पीना चाहिए।
जिससे  मुंह का लार भी पानी के साथ पेट में चला जाए।

आप सभी जानते होंगे कि जब मुंह का लार जाएगा पेट में तो वह पीत में मिल जाएगा। जब पीत और लार दोनों मिलेगा तो लवण बनता है।
 पीत + लार = लवण।
लवन से एसिड बनेगा।
एसिड खाना को पचाता है।
इससे रस तैयार होता है,लत्थी-लत्थी तैयार होता है।
वही रस्सा ( maza ) खुश बनता है और वही खुश इंसान के पुरे शरीर में फैलता है,उसी आधार में इंसान का शरीर बनता है और मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।

लेकिन जब मुंह का लार पेट में नहीं जाएगा तो क्या होगा।
जब मुंह का लार पेट में रेगुलर लगातार नहीं जाएगा तो पीत बड़ा हो जाएगा और लार कम होने के कारण ,पीत की बिमारी हो जाएगी।

पीत का लक्षण (1) बा-बार तबीयत खराब हो जाना ।
(2) बार-बार मलेरिया हो जाना। (3) बार-बार ज्वर,बुखार,खांसी मलेरिया,दस्त, खुजली हो जाना।

यह सब बिमारी पीत का है।
यह बिमारी महिलाओं को ज्यादा होती है क्योंकि यह लोग कम पानी पीती हैं। महिलाओं को पथरी ज्यादा होती है क्योंकि ये लोग पेशाब को रोक कर छत रखती हैं।

पेशाब को जब रोक कर रखती हैं तो पेशाब में गंदे कण जम जाती है। इसलिए महिलाओं को ज्यादा वर्दी,खांसी होती है।

यह पीत तब कंट्रोल होगा जब इंसान पानी घुट-घुटकर पीयेगा मुंह का लार पानी के साथ मिलकर  जाएगा पेट में और पीत में मिल जाएगा।


पीत दोष 'अग्नि' और 'जल' इन दो तत्वों से मिलकर बना है। यह हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन और एंजाइम को नियंत्रित करता है। शरीर की गर्मी जैसे कि शरीर का तापमान ,पाचक अग्नि जैसी चीजें पीत द्वारा ही नियंत्रित होती है। पीत का संतुलित अवस्था में होना अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी है। शरीर में पेट और और छोटी आंत में पीत प्रमुखता से पाया जाता है। ऐसे लोग पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे कि कब्ज,अपने, एसिडिटी आदि से पीड़ित रहते हैं।पीत दोष के असंतुलित होते ही पाचक अग्नि (जठर अग्नि) कमजोर पड़ने लगती है। साथ ही हृदय और फेफड़ों में कफ इक्ट्ठा होने लगता है।

पीत का संतुलित अवस्था में होना इंसान के सेहत के लिए बहुत जरूरी है।

पीत का बनना न कम होना चाहिए न ज्यादा।


(3) कफ की बिमारी इस प्रकार से होती है-
- गले में बलगम को कफ के नाम से भी जाना जाता है। जब हमारे गले या नाक के पीछले हिस्से में बलगम जमा हो जाता है,तो इससे बहुत असुविधाजनक महसूस होता है।म्यूकस मेम्ब्रेन (mucus membrain) श्वसन प्रणाली की रक्षा करने और उसको सहारा देने के लिए कफ बनाती है। ये मेम्ब्रेन निम्न अंगों में होती है। मुंह,नाक,गला,साइनस, फेफड़े।

गले की नाक की ग्रंथी 1 दिन में कम से कम 1 से 2 लीटर बलगम का उत्पादन करती है। बलगम या कफ की अधिक मात्रा में होना परेशान करने वाली समस्या हो सकती है। 

इसके कारण घंटों बेचैनी रहना बार बार गला साफ करते रहना और खांसी जैसी बीमारी हो सकती है। ज्यादातर लोगों में यह एक अस्थाई समस्या होती है।

 हालांकि कुछ लोगों के लिए यह एक स्थिर समस्या बन जाती है।
 धूल और प्रदूषण की रोकथाम करके कफ के निर्माण में कमी की जा सकती और इसके लक्षणों को कम करने के लिए दवाएं भी उपलब्ध हैं।




पृथ्वी के महान आयुर्वेद दाता बागवट ने कहा है - भोजन अन्ते विषमभारि:।
अर्थात भोजन के अन्त में पानी पीना विष के समान है।

जब हम खाना खाते हैं या कुछ भी चीज खाते हैं तो वह पेट में चला जाता है यह तो हर इंसान जानता है। लेकिन इसके बाद क्या होता है इसके बारे में आप पूरी तरह से नहीं जानते होंगे। 

हमारे पेट में भोजन जाने के बाद हमारे शरीर में आग जलना शुरू हो जाती है। जिसे हम जठरअग्नि  कहते हैं।
यह 1घंटा 20 मीनट तक जलता है। वहीं जानवरों के पेट में 4 घंटे तक जलता है। 

 इससे हमारे शरीर में खाना को पचाता है।
इससे रस तैयार होता है,लत्थी-लत्थी तैयार होता है।
वही रस्सा ( maza ) खुश बनता है और वही खुश इंसान के पुरे शरीर में फैलता है,उसी आधार में इंसान का शरीर बनता है और मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।

तो इसी बीच जब हम पानी पीते हैं तो यह जठरअग्नि जलने के बजाय भुत जाती है। और इससे खाना पचने के बजाय सड़ जाती है और पेट में गैस बन जाती है। यह खून के साथ मिलकर हमारे पुरे शरीर में दौड़ती है और खुश को गंदा करती है।
यह गैस कैसा होता है। यह गैस ऐसा होता है,जब लोग पालते हैं और बदबू देती है।

हमारे शरीर में पेट में गैस बनने से ही हमारे शरीर में 200 से अधिक बिमारियों की शुरुआत हो जाती है।

इसलिए हमें खाना खाते समय भोजन ग्रहण करते समय पानी नहीं पीना चाहिए।

यदि हम भोजन को चबा-चबाकर खाएं तो पानी पीने की आवश्यकता नहीं होगी।

यदि ज्यादा प्यास लगे तो हल्का गर्म पानी पीयें।

भोजन करने से आधा से एक एक घंटा पहले या बाद में पानी पीयें।


Saturday, June 5, 2021

क्षत्रिय

3. क्षत्रिय
शक्तिमान के साथ आदर्श।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।

सुविचारों का संग्रह।

आध्यात्मिक कहानियां,गाने,भजन,गीत, कीर्तन।

मौसम - मौसम की जानकारी।

गीता ज्ञान - की निश्चित जानकारी।

शक्तिमान के साथ आदर्श।
काम,क्रोध,मोह,लोभ,मद तथा मत्सर पर नियंत्रण करना।

हमेशा मुख में 'ओम मंत्र' का गुंजना।

पंच ज्ञान इन्द्रियों में नियंत्रण।
ज्ञान इंद्रियां - आंख,नाक,कान,जीभ और त्वचा।

पंचतत्व - अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी और आकाश।

मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

भय,क्रोध,चिंता और खिन्नता को नियंत्रिण करना या मुक्त होना।

यह छः अवगुणों पर नियंत्रण।
1. काम 
2. क्रोध 
3. मोह
4. लोभ 
5. मद 
6. मत्सर

चित्र, चलचित्र- आध्यात्मिक। पुराणें, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता।

श्रीमद्भगवद्गीता के अमृतपान से साहस,हिम्मत,समता,सहजता, स्नेह,शांति,धर्म आदि दैवी गुण विकसित होते हैं तथा अधर्म और शोषण और का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है।


ब्राहमुहूर्त में उठना चाहिए। ब्राहमुहूर्त में उठने से आयु, बुद्धि,बल एवं अयोग्यता बढ़ती है।


वेदों का स्वाध्याय।

सूर्योपासना ( सूर्य-गायत्री मंत्र) सूर्य-नमस्कार।

योग,प्राणायाम,जप तप, ध्यान को अपने जीवन में अपनाना अनिवार्य।

योग- यौगिक क्रियाएं 2। यौगिक मुद्राएं 8।  तन-मन के स्वास्थ्य हेतु सरल साधन - योगासन।18

प्राणायाम - जीवन में नवचेतना का स्रोत: प्राणायाम।
प्राणायाम का अर्थ है प्राणों का निर्माण।
जाबालोपनिषद् में प्राणायाम को समस्त रोंगो का नाशकर्ता बताया गया है। प्राणायाम के द्वारा हमारी प्राणशक्ति का अद्भुत विकास होता है।

जब योग और मुद्रा का अभ्यास किया जाता है, तो चक्र संतुलित हो जाते हैं और हमारी प्रणाली को शारीरिक और भावनात्मक दोनों ही तरह से एक स्थिर, संतुलित तरीके से कार्य करने में सक्षम बनाते हैं। इन में कुछ योग आसन शामिल हैं:

जब तक चक्र जागृत ना हो तब तक इंसान को उसके होने का पता भी नहीं चलता है। जब यह जागृत होता है तभी उस चक्र का होने का इंसान को अनुभव होता है।

परिभाषा।
1. काम - (आलस्य)
1.   दोस्तों काम आधारित आलस्य आलस्य निर्धनता की जननी है आलस्य करने से मनुष्य का विभिन्न तरह से नुकसान होता है दोस्तों जैसे कि आपका कीमती सामान ही कहीं पढ़ा है और बारिश हो रहा हो जाए उसे चोरी होने की आशंका हो तो भी आप आलस्य के कारण आप उसे सुरक्षित स्थान पर नहीं रखते हैं ऐसे में वह सामान चोरी हो जाती हैं और आपका व कीमती सामान चोरी होने से आपका आर्थिक रूप से नुकसान होता है यह एक छोटी सी असावधानी के कारण आपकी आलस्य के कारण।
2. क्रोध 
दोस्तों पीने के लिए कोई चीज है तो क्रोध। दोस्तों यह सत्य है परंतु यह कहां तक साथ है दोस्तों क्रोध मनुष्य को बहुत तरह से नुकसान पहुंचाता है दोस्तों क्रोध के कारण मनुष्य विभिन्न प्रकार से नुकसान कुछ मिलता है क्रोध के कारण कई बार रिश्ते नाते टूट जाते हैं। जिससे बाद में अपने क्रोध के कारण रिश्ते टूटने से हमें पछतावा होता है।
दोस्तों क्रोध के कारण कई बार हम कीमती सामानों को तोड़ देते हैं कई बार किसी अन्य के सामानों को भी तोड़ देते हैं क्रोध के कारण लोग अपने कीमती मोबाइल को भी तोड़ देते हैं टीवी को भी तोड़ देते हैं ऐसी बहुत सारे उदाहरण है दोस्तों कीमती सामानों को तोड़ते हैं नुकसान पहुंचाते हैं जबकि वह सामान हमारा अपना होता है और हमें आर्थिक रूप से नुकसान होता है और बाद में हम पछतावा होता है किसी और का भी सामान को क्षति पहुंचाते हैं जिससे हमें बाद में उसका भरपाई करना पड़ता है और इससे भी हमें पछतावा ही होता है दोस्तों।
3. मोह
दोस्तों कई बार हम मुंह में पड़ जाने के कारण अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं हम सही रास्ते में जाने की बजाय हम उस रास्ते से भटक जाते हैं जिसे कई लोगों को बहुत दुख होता है कई लोगों को मदद करने में हम पीछे हट जाते हैं कि नहीं तो हम मदद नहीं कर पाते हैं क्योंकि हम मोह में पड़ जाते हैं दोस्तों में पड़ जाने का और भी बहुत सारे नुकसान है उदाहरण के तौर पर कोई इंसान जब किसी स्त्री के मुंह में पड़ जाता है तो उसे उसे अपने माता-पिता का भी ख्याल नहीं रहता अपने माता-पिता को भी मारपीट करता है मुंह के कारण रिश्ते नातों को भी तोड़ने पर उतारू हो जाते हैं किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में ना काम हो जाने में भी मौका भूमिका होता है जिससे लाखों लोगों के कल्याण होने की बजाय उनका कल्याण हो जाता है दोस्तों। मुंह में पड़ जाने से इंसान का कार्य क्षमता कम हो जाता है उनमें आलसी भी पड़ जाता है कार्य करने की क्षमता भी घट जाती है कान्हा में भी पड़ जाता है वह डिप्रेशन में भी चला जाता है उससे से लोग ही आना शुरू हो जाता है जो अवगुण है इसके पश्चात कोई कार्य ठीक से ना होने के कारण उसमें क्रोध भी जन्म ले लेती है दोस्तों और क्रोध के भी आ जाने के कारण मद तथा मदसर भी उस इंसान पर लागू हो जाती है दोस्तों वह उसका सेवन करने के लिए मजबूर हो जाता है।
4. लोभ 
5. मद-
6. अहंकार


सात यौगिक चक्रों को जागृत करना या होना।
1. सहश्रार चक्र- चोटी का स्थान के पास ।
2.आज्ञा चक्र - दोनों भौंहों के बीच।
3. विशुद्धाख्य चक्र - कंठ में।
4.अनाहत चक्र-हृदय में।
5.मणिपुर चक्र - नाभिकेन्द्र में।
6.स्वाधिष्ठान चक्र - नाभि से नीचे।
7. मूलाधार चक्र - गुदा के पास।

कल्कि - कलह क्लेश से मुक्त करने वाला।

पृथ्वी अर्थात संसार अर्थात दुनिया।
 संसार के महाद्वीप -
दुनिया के सभी देशों के नाम - जानकारी।

हमारा अपना महाद्वीप -एसिया।

एशिया महाद्वीपों की देशों की संख्या -

फिर अपना देश-भारत।
भारत देश के राज्यों की संख्या।

झारखंड राज्य के जिलों की संख्या -

हमारा जिला रांची के प्रखण्डों की संख्या।

हमारा प्रखण्ड अनगड़ा के पंचायतों की संख्या।

हमारा पंचायत कुच्चू के गांवों की संख्या।

हमारा गांव हुण्डरू के टोंलो की संख्या।

गांव - टोंलों के घरों की संख्या।


दुनिया के सभी देशों के नाम - जानकारी।

स्वास्थ्य
स्वास्थ्य ही धन है।
शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए या होने के लिए  हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक होता है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पौष्टिक आहार के साथ अनेक बिमारियों से बचने के लिए बिमारियों की जानकारी और उसका इलाज की जानकारी की आवश्यकता होती है।
बिमारी फैलता कैसे हैं - 
हम ( मनुष्य ) इससे कैसे बच सकता है।



कबीर अमृतवाणी-

वैश्य

2.वैश्य
शक्तिमान के साथ आदर्श।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।

मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।

कौशल क्षमता। की कार्यों में कौशोलिक।

शुद्र

1. शुद्र 
शक्तिमान के साथ आदर्शो के विपरीत होना।
1. झूठ नहीं बोलना।
2. चोरी नहीं करना।
3. हिंसा नहीं करना।
4. अपने से बड़े और बुजुर्गों की इज्जत करना।
5. दूसरों की मदद करना।
6. स्वावलंबी बनाना।
7. कभी नशा नहीं करना।






मनुष्य की मुलभूत चीजें भोजन वस्त्र मकान ।
1. भोजन
2. वस्त्र
3. मकान


नींद लेने का समय वह स्वभाव।

नींद से उठने का समय वह स्वभाव।

कौशल क्षमता। घरेलू काम काज का थोड़ा बहुत अनुभव।

सूर्योंदय के बाद उठना। सूर्योंदय के बाद उठने से आलस्य,प्रमाद वह तमोगुण बढ़ता है, आयुष्य नष्ट होता है।

सेवा देने का कार्य करना।
मजदुरी,पत्थर तोड़ने वाला,ईंट ढोने वाला। इत्यादि।

मोक्ष वेद

1. शुद्र   शक्तिमान के साथ आदर्शो के विपरीत होना। 1. झूठ नहीं बोलना। 2. चोरी नहीं करना। 3. हिंसा नहीं करना। 4. अपने से बड़े और ब...